गुजरात अपनी संस्‍कृति, खान-पान, आव-भगत के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यही वजह है कि हर साल यहां के अलग-अलग स्‍थानों पर देश-विदेश से पर्यटक पहुंचते हैं। यूं तो राज्‍य में कई ऐसी जगह है जो घूमने के लिए फेमस है लेकिन कुछ ऐसे प्‍लेसेज हैं जो अब तक Unexplored हैं। इन्‍हीं में से एक बालासिनोर में स्थित डायनॉसॉर फॉसिल्‍स पार्क है। आइए जानते हैं इसके बारे में कुछ इंट्रेस्टिंग बातें…

महिसागर जिले में स्थित बालासिनोर शहर को पहले वालासिनोर के नाम से जाना जाता था। यहीं के रैयोली गांव में डायनासोर फॉसिल्‍स पार्क और म्‍यूजियम है। इसकी खास बात यह है कि यह भारत का पहला और विश्‍व का तीसरा डायनॉसॉर फॉसिल्‍स पार्क और म्‍यूजियम है।

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यह है भारत का पहला डायनॉसॉर फॉसिल्‍स पार्क और म्‍यूजियम

क्‍या है इतिहास?
टूरिस्‍ट गाइड अनंत भावसार ने नवभारतटाइम्‍स.कॉम से बातचीत में बताया, ‘साल 1980-81 में पुरातत्‍वविज्ञानियों को बालासिनोर के पास रैयोली में आकस्‍मिक रूप से डायनॉसॉर की हड्डियां और जीवाश्म मिले थे। इसी के बाद से यहां पर शोधकर्ताओं की भीड़ पहुंचने लगी। फिर यहां कई बार खुदाई की गई जिसमें पता चला कि 66 मिलियन साल पहले 13 से भी ज्‍यादा डायनॉसॉर की प्रजातियां इस जगह पैदा हुई थीं।’

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रैयोली में मिले थे डायनॉसॉर के जीवाश्म

सबसे महत्‍वपूर्ण खोज
गाइड भावसार ने आगे बताया, ‘इस जगह की सबसे महत्‍वपूर्ण खोज थी, राजासौरस नर्मेन्‍देनिस नाम का मांसाहारी डायनॉसॉर। यह डायनॉसॉर टायरेनोसोरस रेक्‍स (टी-रेक्‍स) की प्रजाति से मिलता-जुलता है लेकिन उसके सिर पर एक सींग और राजा की तरह एक क्राउन होता है। यही वजह है कि इसे राजासौरस कहा जाता है। इस डायनॉसॉर की दूसरी कई अश्‍मियां नर्मदा नदी के किनारे पाई गई थीं और इसलिए उसके नाम के पीछे नर्मेन्‍देनिस लगता है।’

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पार्क के अंदर दी गई हैं डायनॉसॉर से संबंधित जानकारियां

कैसे हुआ पार्क का निर्माण?
इन डायानॉसॉर के अश्‍मि अंडे और अन्‍य चीजों को फ्रीज करके इस पार्क का निर्माण किया गया है। पार्क के साथ आधुनिक टेक्‍नॉलजी के जरिए 10 गैलरी का म्‍यूजियम भी बनाया गया है जो डायनॉसॉर की उत्‍पत्ति और विकास के बारे में ऐतिहासिक विवरण देता है।

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52 हेक्‍टेयर में फैला है पार्क

गाइड की लें मदद
करीब 52 हेक्टेयर में फैले इस पार्क में लगभग हर जगह डायनासॉर के अंडे के अश्‍मि के लोकेशन्‍स हैं, ऐसे में पार्क में घूमने के लिए गाइड करना बेहतर होगा। गाइड की मदद से आप आसानी से ये लोकेशन्‍स के बारे में जान पाएंगे। यही नहीं, पार्क में आपको टायेनोसोरस रेक्‍स और ब्रोन्‍टोसौरस के बड़े-बड़े स्‍टैचू देखने को मिलेंगे।

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म्‍यूजियम के अंदर की तस्‍वीर

कई फॉसिल्‍स हैं शामिल
पार्क में जो फॉसिल्‍स हैं, उनमें फेमुर, आई होल, टिबिया फिबुला, वर्तेब्रा, एग स्‍केल, नाखून, चमड़ी और लकड़ी के जीवाश्मि शामिल हैं। जो चीज सबसे दिलचस्‍प है, वह है डायनॉसॉर के दिमाग का जीवाश्म।

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म्‍यूजियम में मिलती हैं अलग-अलग फॉसिल्‍स की इन्‍फर्मेशन

पार्क के ही पास है म्‍यूजियम
फॉसिल्‍स पार्क के पास में ही म्‍यूजियम बनाया गया है जहां भारत और गुजरात में पाए गए डायनॉसॉर की जीवाश्‍म के बारे में आप डीटेल में जानकारी ले सकते हैं। अलग-अलग प्रजातियों का विकास कैसे हुआ, उसे समझाने के लिए इस म्‍यूजियम में मल्‍टीमीडिया डिवाइसेस का यूज किया गया है।

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म्‍यूजियम में किया गया है मल्‍टीमीडिया डिवाइसेस का यूज

म्‍यूजियम में लगभग 40 जितने स्‍कल्‍पचर्स रखे गए हैं जो डायनॉसॉर के कद, आकार, आदतों और निवास जैसी चीजों की जानकारी देते हैं। इन्‍हें पुरातत्‍वविदों के वर्षों के अभ्‍यास के बाद तैयार किया गया है। यहां बच्‍चों के एंटरटेनमेंट के लिए ‘डिनो फन’ बनाया गया है।

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म्‍यूजियम में रखे गए हैं लगभग 40 स्‍कल्‍पचर्स

कितनी है दूरी, जाने का बेस्‍ट समय?
अहमदाबाद से इस डायनॉसॉर पार्क की दूरी करीब 103 किमी है। यहां पहुंचने के लिए सबसे बेस्‍ट ट्रांसपर्टेशन सिस्‍टम बस या आपका अपना साधन है। 103 किमी की दूरी पूरी करने में आपको दो से ढाई घंटे का वक्‍त लग सकता है। चूंकि अक्‍टूबर से फरवरी के बीच गुजरात का मौसम अच्‍छा होता है, ऐसे में आप इन महीनों में पार्क की विजिट फैमिली मेंबर्स या दोस्‍तों के साथ कर सकते हैं।

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अहमदाबाद से डायनॉसॉर पार्क की दूरी है करीब 103 किमी