kanyakumari_view
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कश्मीर से कन्याकुमारी तक.. समूचे देश की बात होने पर अक्सर इस जुमले का इस्तेमाल होता है। देश के दो छोरों पर स्थित ये इलाके न केवल कुदरती सौंदर्य, बल्कि पर्यटन के लिहाज से भी अव्वल रहे हैं। कन्याकुमारी को अक्सर धार्मिक स्थल के रूप में मान्यता दी जाती है लेकिन यह शहर आस्था के अलावा कला व संस्कृति का भी प्रतीक रहा है। तीन समुद्रों हिंद महासागर, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित यह शहर ‘एलेक्जेंड्रिया ऑफ ईस्ट’ भी कहा जाता है। दूर-दूर फैले समंदर की विशाल लहरों के बीच आपको यहां जो सबसे अधिक लुभा सकता है वह है यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा। चारों ओर प्रकृति के अनंत स्वरूप को देखकर ऐसा लगता है मानो पूर्व में सभ्यता की शुरुआत यहीं से हुई थी।

लाइटहाउस की चमक

जब आप कन्याकुमारी मंदिर यानी माता अम्मन के मंदिर जाते हैं तो यह आवाज आपकी आस्था को और बढ़ाने का काम करेगी। मान्यता के अनुसार देवी आदिशक्ति के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक कन्याकुमारी माता (अम्मन) मंदिर भी है। तीन समुद्रों के संगम स्थल पर स्थित यह एक छोटा-सा मंदिर है जो मां पार्वती को समर्पित है। लोग मंदिर में प्रवेश करने से पहले ‘त्रिवेणी संगम’ में डुबकी लगाते हैं, जो त्रिवेणी मंदिर के बाईं ओर 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद रखा जाता है, क्योंकि मंदिर में स्थापित देवी के आभूषणों की रोशनी से समुद्री जहाज इसे लाइटहाउस समझने की भूल कर बैठते हैं और जहाज को किनारे करने के चक्कर में दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं!

चांद और सूरज का एक साथ नजारा!
यदि यह कहें कि कन्याकुमारी आने की सबसे बड़ी वजहों में एक यह भी है कि लोग कुदरत की सबसे अनूठी चीज देखने आते हैं तो गलत नहीं होगा। यह अनूठी चीज है चांद और सूरज का एक साथ नजारा। पूर्णिमा के दिन यह नजारा और हसीन होता है। दरअसल, पश्चिम में सूरज को अस्त होते और उगते चांद को देखने का अद्भुत संयोग केवल यहीं मिलता है। 31 दिसंबर की शाम इस साल को विदा कीजिए और अगले दिन तड़के वहीं जाकर नए साल की आगवानी करने का सुख भी पा सकते हैं आप। यकीनन यह दृश्य इतना अद्भुत होता है इसे देखना अलग ही तरह का रोमांच है।

स्वामी विवेकानंद की याद मे
स्वामी विवेकानंद भारत भ्रमण के दौरान सन् 1892 में कन्याकुमारी आये थे। उस दौरान एक दिन समुद्र में तैरकर एक विशाल पत्थर के टुकड़े पर जा पहुंचे। वे इस निर्जन स्थान पर योग साधना करने लगे। इसके कुछ ही दिन बाद वे शिकागो में आयोजित विश्र्व धर्म-सम्मेलन में भाग लेने गए थे। स्वामी विवेकानंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए विवेकानंद रॉक मेमोरियल कमेटी ने साल 1970 में रॉक मेमोरियल बनवाया। इस स्थान को ‘श्रीपद पराई’ के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं। इस स्मारक के दो प्रमुख हिस्से हैं- विवेकानंद मंडपम और श्रीपद मंडपम। विवेकानंद मेमोरियल जाने के लिए आपको समुद्री बोट-सर्विस लेनी पड़ेगी, जो आपको नियमित अंतराल पर मिल जाएगी।

5000 शिल्पकारों ने बनाई यह मूर्ति!
यहां दूर से ही नजर आने वाली ‘थिरुक्कुरल’ काव्य ग्रंथ की रचना करने वाले अमर तमिल कवि थिरुवल्लुअर की प्रतिमा मुख्य दर्शनीय स्थलों में से एक है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है मतलब इस स्मारक की कुल उंचाई 133 फीट है और इसका वजन 2000 टन है। दिलचस्प बात यह है कि इस प्रतिमा को बनाने में करीब 5000 शिल्पकारों द्वारा कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का इस्तेमाल किया गया था। यह मूर्ति ‘थिरुक्कुरल’ के 133 अध्यायों का प्रतीक है।

अनूठी तकनीक का कमाल
यहां समुद्र तट पर स्थापित गांधी मंडप वह स्थान है, जहां महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। यहां आप गांधीजी के संदेश और उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं के चित्र देख सकते हैं। इस स्मारक की स्थापना 1956 में हुई थी। इस स्मारक को बनाते वक्त ऐसी अनोखी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिससे हर साल महात्मा गांधी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर को सूर्य की प्रथम किरण उस स्थान पर पड़ती है, जहां महात्मा की राख रखी हुई है।

कैसे पहुंचें?

नजदीकी एयरपोर्ट केरल का तिरुअनंतपुरम है जो कन्याकुमारी से 89 किलोमीटर दूर है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। यहां से लक्जरी कार भी किराए पर अवेलेबल होती हैं। कन्याकुमारी चेन्नई सहित भारत के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। चेन्नई से रोज चलने वाली कन्याकुमारी एक्सप्रेस द्वारा यहां जाया जा सकता है। बस द्वारा कन्याकुमारी जाने के लिए त्रिची, मदुरै, चेन्नई, तिरुअनंतपुरम और तिरुचेन्दूर से नियमित बस सेवाएं हैं। तमिलनाडु पर्यटन विभाग कन्याकुमारी के लिए सिंगल डे बस टूर की व्यवस्था भी करता है।

कब जाएं

समुद्र के किनारे होने के कारण यूं तो पूरा साल कन्याकुमारी जाने लायक होता है लेकिन फिर भी पर्यटन के लिहाज से अक्टूबर से मार्च के बीच जाना सबसे बेहतर है।

SOURCEhttps://www.jagran.com/
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