रहीम का मकबरा
रहीम का मकबरा

आगरा में ताज महल बनने से पहले दिल्ली में मोहब्बत की एक निशानी बनाई जा चुकी थी। एक शक्तिशाली शाही शख्स ने अपनी बेगम के लिए मकबरा बनवाया था। ताजमहल बनने से करीब 40-50 साल पहले दिल्ली में यह इमारत बनी। ताजमहल को लोग मोहब्बत का प्रतीक मानते हैं, इस तरह उससे पहले ही दिल्ली में मोहब्बत वाली इमारत मौजूद थी। यह ऐतिहासिक इमारत है-रहीम का मकबरा। इसे मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक रहीम ने अपनी बेगम के लिए बनवाया था। निजामुद्दीन में हुमायूं के मकबरे के ठीक बगल में यह इमारत मौजूद है।

मुगलकाल में किसी महिला का पहला मकबरा
रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना था। यह माना जाता है कि उन्होंने अपनी पत्नी माह बानु के लिए मकबरा बनवाया था। सन् 1598 में यह मकबरा बनाया गया। जानकारी के मुताबिक, मुगलकाल में किसी महिला के लिए बनाया गया यह पहला मकबरा था। यहीं रहीम को भी 1627 में दफनाया गया। इसके कई साल बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में आगरा में ताज महल बनवाया। सन् 1632 में ताज महल के बनने की शुरुआत हुई थी। करीब 10 साल इसमें लगे। मगर, पूरी तरह यह 1653 में बनकर तैयार हुआ। इससे पहले दिल्ली में रहीम द्वारा अपनी बेगम के लिए बनाया गया मकबरा मौजूद था।

सफदरजंग मकबरे में लगे कीमती पत्थर
रहीम का मकबरा, हुमायूं के मकबरे के नमूने पर आधारित है। यह बहुत हद तक हुमायूं के मकबरे से मिलता-जुलता है। लाल बलुआ पत्थर, संगमरमर से बनी यह दो मंजिला इमारत एक ऊंचे चबूतरे पर मौजूद है। इसके बनने के करीब 150 साल बाद इस इमारत में लगे कीमती पत्थरों को निकालकर सफदरजंग मकबरे में लगाया गया। आज जो सफदरजंग मकबरे में लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर दिखते हैं वह रहीम के मकबरे से निकाले गए हैं। नवाब शुजाउद्दौला ने अपने पिता मिर्जा मुकीम अबुल मंसूर खां के लिए इसे बनवाया। उनका उपनाम सफदरजंग था और वह मुहम्मद शाह (1719-48) के अधीन अवध के सूबेदार थे। सफदरजंग का मकबरा सन् 1753-54 में बनाया गया था।

रहीम के दोहे आज भी प्रसिद्ध
रहीम, वही रहीम हैं, जिनके दोहे हम सभी हिंदी की पुस्तकों में पढ़ते आए हैं। रहीम, अकबर के संरक्षक बैरम खां के बेटे थे। वे अकबर और जहांगीर दोनों मुगल बादशाहों के दरबार में रहे। अकबर के नवरत्नों में से एक रहीम भी थे। नवरत्नों में बीरबल, राजा टोडरमल, तानसेन और अबुल फजल के नाम प्रमुख हैं। ‘नवरत्न’ अपने-अपने क्षेत्र के 9 विद्वानों का समूह था। अकबर की मौत के बाद जहांगीर के मुगल बादशाह बनने का विरोध करने पर जहांगीर ने रहीम के दो बेटों की हत्या कर दी थी।

कृष्ण भक्त थे रहीम
रहीम को कई भाषाओं पर पकड़ थी। हिंदी में लिखे उनके दोहे आज भी रहीम के दोहे के रूप में प्रसिद्ध हैं। संस्कृत के साथ ही उन्हें ज्योतिष में भी महारत हासिल थी। उन्हें संस्कृति से बेहद लगाव था। रहीम कृष्ण के अनुयायी थे। यह बात उनकी रचनाओं से भी साबित होती है। उनका लिखा एक दोहा कुछ इस तरह का है-प्रीतम छबि नैनन बसी, पर छवि कहां समाय। भरी सराय रहीम लखि, पथिक आप फिर जाय। मकबरे का कन्जर्वेशन आगा खां ट्रस्ट फॉर कल्चर, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के साथ मिलकर करीब 4 साल से कर रहा है। मकबरे का संरक्षण ठीक तरीके से न होने और इसमें हुई तोड़फोड़ की वजह से इमारत को काफी नुकसान पहुंचा है।